जीवन में किसी – किसी की जगह ऐसी होती है कि उसका जाना दिल के कोने को ऐसा सूना कर जाता है कि वो कभी नही भरता । समय हाथ से रेत की तरह फ़िसल जाता है और हम सोचते रह जाते हैं कि काश हम ऐसा करते या काश हम ऐसा कहते…..। पर बीता समय कब वापस आया है….!! ये समझने में एक उम्र निकल जाती है । ऐसी ही एक कहानी कुछ जग बीती तो कुछ आप बीती कहने जा रही हूँ ।
माँझा
बसंत की हलकी ठंड में , दिल्ली के दुमंजिले मकानों की छतों पर खड़े , छोटे – बड़े सभी की नज़रें आसमान में रंग-बिरंगी लहराती पतंगों पर थीं । वहीं एक छत पर रंजन अकेला , उदास कहीं और खोया था । उसे ये मौसम , ये रंग , सब बेरंग लग रहे थे । वो सोच रहा था कि कुछ दिन पहले वो भी अपने पापा के साथ ऐसे ही पतंग उड़ा रहा था । पापा ने उसे पतंगबाज़ी के सारे दावपेच सिखा दिए थे । कैसे पतंग की कन्नी बाँधनी चाहिए और कैसे उड़ानी चाहिए , वो सब सीख गया था ।…..पापा के हाथ में डोर होती और वो चरखी संभालता था । किसी की क्या मज़ाल थी कि कोई उनकी पतंग काट दे !! पापा कहते थे……
देख बेटा , माँझा मज़बूत होना चाहिए , नही तो पतंग कट जाएगी ।
उसका मज़बूत माँझा तो उसके पापा थे….!! उसके चैंपियन थे पापा !! उनके बिना उसके जीवन की पतंग कट चुकी थी । क्यूँ…..? आखिर उसके साथ ही ऐसा क्यूँ हुआ ? उसे वो दिन याद आ रहा था जब वो और उसकी छोटी बहन गीता स्कूल से लौटे थे । वो आते ही अपनी पतंग – डोर ढूँढ रहा था…….
माँ….मेरी पतंग नही मिल रही…आपने कहीं रखी क्या ?
उसने कुछ खीजते हुए पूछा था । माँ ने नाराज़ हो कर कहा था…
ऊँट का ऊँट हो गया , फिर भी छतों पर छलांगें मारता फिरता है…….बारहवीं में आ गया……..ग्यारहवीं का रिज़ल्ट तो किसी से छिपा नही है……मुश्किलों पास हुए हो……और ख़्वाब हैं एन डी ए में जाने के……!!!! तुम्हारे पास क्या अलादीन का चिराग़ है कि घिसोगे और सब कुछ मिल जाएगा…..? आने दे तेरे पापा को आज ।
लेकिन पापा की डाँट भी कोई डाँट थी !! बिलकुल कॉलोनी के नंदू की चाट जैसी……..।फिर आज तो पापा उसे मूवी ले जाने वाले थे और उन्हें ऑफ़िस से जलदी आना था । पापा ने उसे नई – पुरानी सारी वॉर मूवीज़ दिखाईं थीं । गीता ने मुँह फुलाकर कहा था……
पापा…भैया की पसंद की मूवी के बाद मेरी पसंद की भी देखेंगे ।
पापा ने मुस्कुरा कर गीता से अगली बार उसकी पसंद की मूवी देखने का वादा किया था । पापा पता नहीं कहाँ रह गए….वो सोच ही रहा था कि तभी फ़ोन की घंटी बजी थी और उस फ़ोन ने उनकी दुनिया बदल दी थी । ऑफ़िस से आते हुए पापा का एक्सीडैंट हो गया था । सिर में गहरी चोट आई और वो नही रहे । ये सुन उसके दिल की धड़कने जैसे रूक सी गई थीं , सब कुछ जैसे थम गया था ।
पापा के जाने के बाद जो समय रूक गया था वो आगे बढ़ा ही नही । सूरज ढलने लगा तो उसे याद आया कि उन्हें कैसे रोज़ शाम को पापा के आने का इंतज़ार रहता था । गीता अपनी शिकायतों का पुलिंदा बाँधे बालकनी में लटकी रहती तो रंजन दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलते हुए उनकी राह देखता रहता । उनके आते ही दोनों बहन-भाई उन्हें घेर लेते । पापा पहले गीता की शिकायतें सुनते……
पापा भैया को समझाइये….अपना टिफ़िन तो ब्रेक से पहले ही खा लेते हैं और ब्रेक में मेरा माँगते हैं ।
पापा रंजन का कान पकड़ कर दिखावे के लिए डाँटते ।
ये ग़लत बात है , भला अपनी छोटी बहन का भी कोई टिफ़िन खाता है ? तुझे तो इसका ध्यान रखना चाहिए ।
गीता खुश हो जाती । रंजन उसके सिर पर प्यार से एक चपत लगाता और अपने दिनभर के किस्से सुनाने लगता । उसके बाद जाकर पापा माँ से बात करते । रात का खाना सब साथ खाते तो पापा पढ़ाई के बारे में पूछते और खाने के बाद मुश्किल सवाल ख़ुद करवाने बैठ जाते । पापा चाहते थे कि रंजन ट्वैल्थ के बाद एन डी ए का एग्ज़ाम दे और आर्मी जोइन करे । पापा का सपना उसका भी सपना था । हर 26 जनवरी को वे परेड दिखाने ज़रूर ले जाते । गीता साथ ले जाने के लिए तिरंगा झंडा बनाती । सुबह पाँच बजे से घर में परेड देखने जाने की उत्सुकता बढ़ जाती । दिल्ली की कोहरे वाली ठंड में वे गर्म कपड़ों से लद जाते थे। माँ खाने के लिए सामान पैक करतीं । पापा पूरी तरह से देशभक्ति में डूबे “ ऐ वतन , ऐ वतन हमको तेरी कसम , तेरे कदमों में जाँ अपनी लुटा जाएँगे” और “वतन की राह में वतन के नौ जवाँ शहीद हो , पुकारती है ये ज़मीनो – आसमाँ शहीद हो” जैसे गीत गा रहे होते , जिन्हें रंजन और गीता हैरानी से सुनते । दोनों ने वो गीत केवल पापा से सुने थे , फिर धीरे – धीरे उन्हें भी याद हो गए थे और वो भी उनके सुर में सुर मिलाकर गाने लगे थे । जवानों की टुकड़ियाँ देख कर रंजन के रोएँ खड़े हो जाते और शरीर तन जाता था ।
छत पर खड़े रंजन की मुट्ठियाँ भिंच गईं और सीना तन गया। पापा कहते थे……….
एक दिन तू भी ऐसे ही परेड में सीना तान कर सलामी देगा ।
हलकी ठंड से शरीर में सिहरन सी दौड़ गई । ख़्याल आया कि वो तो बिलकुल अकेला खड़ा था , शरीर ढीला पड़ने लगा था । मन में फिर उदासी छाने लगी , पापा सिर्फ़ उसके ख़्यालों में थे , सच तो ये था कि पापा अब कभी वापस नही आएँगे । उसका और पापा का सपना अब कभी पूरा नही होगा उनके साथ ही वो सपना भी चला गया । पापा के बिना वो कुछ नही कर सकता । क्या करेगा आर्मी में जाकर ? उसे यूनीफ़ॉर्म में देखने वाले पापा ही नही होंगे तो क्या फ़ायदा ? वो धीमे कदमों से नीचे आया तो घर में ख़ामोशी फैली थी जो पापा के जाने के बाद से गहराती जा रही थी । माँ रसोई में व्यस्त थीं लेकिन पहले की तरह रसोई से उनकी आवाज़ नही आती थी। गीता टेबल पर सिर झुकाए स्कूल का काम कर रही थी । गीता भी अब ना मुस्कुराती थी , ना ही कोई शिकायत करती थी , करती भी किस से ? फिर भी पढ़ तो रही थी !! उसका दिल तो पढाई में लगता ही नही । वो चुपचाप अपने कमरे में किताबें उलटने – पलटने लगा । पढ़ने की कोशिश करने लगा , पर नाकामयाब रहा । किताबों को एक ओर पटक , टेबल पर सिर झुकाया तो गीता की आवाज़ आई………
भैया…..एक सवाल नही आ रहा…। प्लीज़…बता दीजिए…।
मुझे नही आता….कोई सवाल…ववाल….। अपने आप करले ।
उसके भीतर का गुस्सा गीता पर निकल गया और गीता को झिड़क दिया । गीता सहम कर बाहर चली गई । रंजन ने गीता से कभी ऐसे बात नही की थी , उसे बुरा लग रहा था । पर पता नही उसे किसी से बात करने का मन नही था । वो बिस्तर पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा , पर आजकल नींद भी कहाँ आती थी उसे , उसके कानों में तो लोगों की आवाज़ें गूँजती रहती थी……
देख , बेटा , अब तो तू ही है अपनी माँ और बहन का सहारा । तुझे ही सब संभालना है ।
रंजन भीतर तक काँप रहा था । उसका दिमाग़ सुन्न पड़ रहा था । घर संभालना , माँ – बहन का सहारा बनना…….वो भला ये सब कैसे कर सकता है? ये सब तो पापा करते थे…..वही संभालते थे । वो….ये सब नही कर सकता । एक अंजाना डर था जो उसके भीतर समाता जा रहा था ।
मन कर रहा था कि कहीं से पापा को ढूँढ कर ले आए और फिर से सब कुछ पहले जैसा हो जाए । अगले दिन सुबह स्कूल जाने लगा तो माँ ने बैग में टिफ़िन पहले ही डाल दिया था।क्यूँकि आजकल वो पहले की तरह माँ से टिफ़िन के लिए शोर नही मचाता था । कई बार बिना लंच लिए ही चला गया था । बाहर निकलने लगा तो एक बार मुड़कर देखा जहाँ पापा हर रोज़ खड़े बाय किया करते थे । पापा की वो नाक तक सरक आए चश्मे से मुस्कुराती…..झाँकती आँखें याद आते ही गले में कुछ अटक सा गया । भरी आँखों से उसके कदम आगे बढ़ गए , रास्ते में पड़े कंकड़ को पैर से ठोकर मारता वो आगे बढ़ गया । उसने गीता का इंतज़ार भी नही किया । गीता भागती सी उसके साथ चलने का प्रयास कर रही थी लेकिन वो दूर चल रहा था ।जैसे सबसे नाराज़ था वो । स्कूल पहुँचा तो क्लास में चुपचाप बैठा रहा , ना दोस्तों से पहले सी मस्ती , ना गेम्स पीरियड के लिए मैदान में सबसे पहले भागना । मन करता कहीं दूर चला जाए , सबसे दूर । उसे देख उसकी क्लास टीचर उसके पास आईं थीं….उन्होंने कहा था…..
रंजन….बोर्ड एग्ज़ाम आने वाले हैं , पढ़ाई पर कोंसेनट्रेट करो ।
ये बातें उसकी बेचैनी बढ़ा रही थीं । उसे घबराहट हो रही थी……मन में रह – रह कर विचार आ रहा था कि नही कर सकता वो कुछ भी । एक महीने बाद बोर्ड हैं……ये सोचकर ही वो पसीने से भीग गया । उसे नही देने कोई एग्ज़ाम…..वो कहीं भाग जाएगा । तभी रीसेस की घंटी बजी तो उसने देखा गीता अपना लंच बॉक्स लिए उसकी क्लास के सामने खड़ी थी । उसे वहाँ देख उसके माथे पर बल आ गए , आँखों में सवाल था कि क्यूँ आई है ? वो पहले कभी उसकी क्लास तक नही आती थी । गीता उसके पास आकर प्यार से बोली…..
भैया…..खा लो….।
लेकिन रंजन खीजता हुआ रूखेपन से बोला……
नही खाना मुझे…..तू जा यहाँ से ।
रंजन के जवाब से गीता की आँखों में पानी भर आया । वो भाई के दुख को समझ रही थी । वो भी तो उसी दुख से गुज़र रही थी । वो भाई को फिर से पहले जैसा देखना चाहती थी । पर वो तो दूर होता जा रहा था सबसे । वो चुपचाप वापस मुड़ गई । रंजन को अपने पर हैरानी हो रही थी कि उसे क्या होता जा रहा था । पर क्या करे उसका मन उसके वश में नही था ।
स्कूल की छुट्टी हुई तो वो गीता से नज़र चुरा कर जलदी से निकल जाना चाहता था । क्यूँकि आज उसे सीधा घर नही जाना था । गीता जानती थी कि वो कभी – कभी दोस्तों के साथ खेलने के लिए स्कूल में रूक जाया करता था । वो स्कूल में क्रिकेट कोचिंग लेता था । उसके दोस्तों ने उसे आज भी खेलने को कहा था । लेकिन आज तो वो सबसे दूर भागना चाहता था । उसका दिल क्या चाहता है , वो खुद नही जानता था । स्कूल से निकल कर रंजन यूँ ही सड़कों पर इधर – उधर घूमता रहा । लेकिन दिल की उदासी जाती ही नही थी । पापा के साथ , वो हँसते – खेलते दिन भी ख़त्म हो गए । अब उसे हँसी आती ही नही , उसे तो हँसते लोग भी अच्छे नही लगते । रंजन के माथे पर तनाव आ गया , वो माथे पर आए पसीने को पौंछने लगा तो महसूस हुआ कि हलकी बारिश शुरू हो गई थी । उसने सिर उठा कर आसमान को ताका , बादल घिर आए थे । जलदी से एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया । बारिश तेज़ हो गई थी , वो सिकुड़ता हुआ घने पेड़ के नीचे आ गया । कुछ लोग मस्ती में भीग रहे थे । उन्हें देख उसे वो दिन याद आ गया जब……एक बार इतवार के दिन वो पापा के साथ छत पर पतंग उड़ा रहा था कि इसी तरह बादल आए और तेज़ बारिश शुरू हो गई थी। पापा ने पतंग डोर एक ओर फ़ैंकी और कुरता उतार कर बारिश में नहाने लगे । वो पापा को हैरानी से देख रहा था तो उन्होंने हँसते हुए कहा था…….
देखता क्या है ? कमीज़ उतार और आजा ।
उस दिन उसे पापा……अपनी उम्र के टीनएजर लग रहे थे , मस्ती में डूबे । तभी गीता भी आ गई थी और पापा ने उसे गोद में उठा लिया था । वो शोर मचाती रही थी । माँ शोर सुनकर ऊपर आईं तो उन्होंने माँ को कितना बुलाया था…… । जब माँ नही आईं तो उन तीनों ने माँ को खींच लिया था । माँ कहती रहीं थीं…..
क्या करते हो…..!! बच्चे बीमार पड़ जाएँगे ।
पर किसी ने माँ की बात नही सुनी और पापा अपने उसी मस्ताना अंदाज़ में पुराने फ़िल्मी गीत गाते रहे…….रिमझिम के तराने लेके आई बरसात……, आया सावन झूम के…….। फिर तो माँ भी पापा के गीतों का मज़ा ले रही थीं । चारों देर तक बारिश में नहाते रहे , हँसते रहे थे….भीगते रहे थे।
बारिश थमी तो पेड़ के आस – पास जमा लोग चलने लगे । रंजन भी यादों से निकल , आज में आ गया था । वो थक गया था , आराम करना चाह रहा था । अभी रात नही हुई थी , सूरज ढलने पर था । आसमान में पंछी चहकते हुए अपने घोंसलों की ओर जा रहे थे । उसने एक नज़र भर कर आसमान को देखा और कदम घर की ओर बढ़ गए । घर के पास पहुँचा तो देखा कि गीता बालकनी में खड़ी थी , बिलकुल वैसे ही जैसे वो पापा की इंतज़ार में खड़ी रहती थी । घर के पास आते ही दिल पर फिर से उदासी छाने लगी थी । गीता ने आँखों में बहुत से सवाल लिए दरवाज़ा खोला । आवाज़ सुन माँ ने बस इतना पूछा…….
कहाँ था इतनी देर…..?
उसने भी इतना ही कहा…….
दोस्त के यहाँ गया था पढ़ने ।
और कहता भी क्या ?? ये कह कर वो सीधा अपने कमरे में चला गया । उसकी टेबल पर उन चारों की एक फ़ोटो रखी थी जो पहले नही थी । फ़ोटो में चारों कितने खुश दिख रहे थे । पास ही एक एलबम रखी थी , वो बिस्तर पर बैठ कर एलबम के पन्ने पलटने लगा । उसके पैदा होने पर , पापा की गोदी में , फिर पापा के कंधों पर । गीता के पैदा होने पर वो कितना प्यार कर रहा था उसे…..और एक फ़ोटो में कैसे उसे गोदी में टाँगा हुआ था । उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई । स्कूल के फ़ैंसी ड्रैस कोंपीटीशन में एक बार वो फ़ौजी बना था और पापा उसके लिए वो ड्रैस खरीद कर लाए थे । पापा ने कैसे एक सपना उसमें देखा था । उसने एक गहरी ठंडी साँस ली । राखी के दिन की फ़ोटो जिसमें गीता छोटी सी थी….अपनी नन्ही सी हथेली फैलाए अपना गिफ़्ट माँग रही थी । सारी खुशियाँ….सारी मुस्कान उस एलबम में कैद हो गईं थीं । उसने आँखें मूँद लीं , एलबम उसके सीने पर रखी थी । थकान से उसे गहरी नींद आ गई । सुबह जलदी आँख खुल गई , आज इतवार था । मुँह – हाथ धो कर वो अपनी टेबल पर बैठ गया । पापा उसके लिए एन डी ए के एंट्रैंस की तैयारी के लिए किताब लाए थे , उसे उठाया और पढ़ने लगा । माँ ने दूध का ग्लास और नाश्ता उसकी टेबल पर रख दिया जैसे पहले उसके एग्ज़ाम्स के दिनों में रखती थीं । थोड़ी देर में गीता हाथ में पतंग और माँझा लिए उसके सामने बैठ गई । वो पतंग को माँझे से बाँधने लगी , पर उसे पतंग उड़ाना कहाँ आता था !! रंजन कनखियों से उसे देखता रहा । गीता पतंग को कभी सीधा करती तो कभी उलटा , पर बाँध नही पा रही थी । अचानक रंजन उठा और उसके हाथ से माँझा लेते हुए बोला………
जो काम तुझे आता नही उसमें क्यों सिर मार रही है…….ला मुझे दे….।
गीता ने मुस्कुराकर माँझा और पतंग उसके हाथ में थमा दी । रंजन पतंग बाँधकर छत की ओर भागा , गीता उसके पीछे भागी । रंजन ने एक झटके से पतंग को आसमान की ओर छोड़ माँझा संभाल लिया था।
Beautiful aunty !!!
Insani ehsaas ko badi khoobsoorati se buna hai apne. ..
Aap hi kar sakti hain!
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आपकी नई कहानी ‘मांझा’ पढ़ते हुए हम यादों के ऐसे सफ़र पर निकल गए जिसने यादों को फिर से ताजा कर दिया।
जीवन के खूबसूरत लम्हों को उन्हीं पलों में पूरी खुशी से जी लेना ही उन्हें अनमोल बना देता है।
फिर वे पल भविष्य में हमें प्रेरणा दें और उन लम्हों की यादें सफल जीवन जीने का संबल बनें, यही सार्थक श्रद्धांजली है हमारे प्रियजन के लिए, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जिन्होंने अपने जीवन का हर पल हमारी खुशियों के लिए न्योछावर किया।
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Rajan became very emotional reading the story.
Very well written.
Congrats!
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Mala ma’am.. Simply awesome
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बहुत खूब
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दीदी , ज़िंदगी के कड़वे सच को स्वीकार कर , अपने सपनों की उड़ान , हिम्मत से भरने की सीख भरी कहानी के लिए ,
आभार। आपकी अगली कहानी , का इतंजार है , दी ।
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Beautiful heart touching story
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Bahut bhaavpurna kahaani Malaji …!!
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Marmik evam dil tak pahunch gayi baat . Sachchi me man ka ek kona kabhi nahi bharta kisi ek k jaane se wo jo bahut hi special hota hai.
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