गोरखपुर की घटना ने देश में सभी को कहीं भीतर तक हिला दिया । उन माँओं के दर्द और रुदन से पूरा देश दहल गया ।दिल में दर्द उठा और खारा पानी गालों पर ढुलक गया । बचपन का वो दिन याद आ गया जब मेरा बुखार नही टूट रहा था और डॉक्टरों को कारण पता लगाने में समय लग रहा था । मैं पेट दर्द से रात में उठ बैठती थी । एक दिन रात में उठी तो पापा को घर के छोटे से मंदिर में जिसमें हिंदू देवताओं के अतिरिक्त गुरू नानकदेव , बुद्ध और जीजस की तसवीर भी थी । गीता , बाईबिल के साथ कुरान भी थी । पापा हाथ जोड़े , आँखें मूँदें खड़े बोल रहे थे……
हे भगवान , मेरी बच्ची का सारा दर्द मुझे देदे और उसे अच्छा कर दे ।
मैं चुपचाप पेट दबाए सोने का बहाना किए लेटी रही । सुबह जब पापा ने पूछा कि रात को दर्द तो नही हुआ था , तो मैंने पापा की ओर देखते हुए , ना में सिर हिला दिया था । ये सुनते ही पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी । सोचती हूँ कि इन बच्चों के माँ-बाप पर क्या गुज़र रही होगी जिन्होंने अपनी आँखों से अपने बच्चों का दम घुटते देखा होगा । अराजकता की जड़ें मज़बूत हो छोटे पौधों को खा रही हैं । मेरी कल्पना के घोड़े बेलगाम दौड़ते हुए सोचने लगे कि आज से सैंकड़ों साल पहले शायद कुछ ऐसा ही हुआ होगा जब कबीर और नानक जैसे संतों का उदय हुआ था । क्या आज हमें फिर किसी कबीर की ज़रूरत नही है जो हमारी आँखों पर पड़े अज्ञान के पर्दे को हटाए ? क्यूँ फिर कोई कबीर नही आ रहा?
कभी ऐसा लगता है जैसे कबीर सब देख रहे हैं !! तभी तो उन्होंने ये कहा………..
जागहु रे नर सोबहु कहा , जम बटपारै रूँधे पहा ।
जागि चेति कछु करौ उपाई , मोटा बैरी है जँमराई ।।
सेत काग आये बन माँहि , अजहूँ रे नर चेतै नाँहि ।
कहै कबीर तबै नर जागै , जम का डंड मूँड मैं लागै ।।
अर्थात – ऐ मनु्ष्य , अज्ञान निद्रा में क्यों सोए हो ? ज्ञान में जागो । यम रूपी रहजन ने तुम्हारा रास्ता रोक रखा है । जाग कर कोई उपाय करो । तुम्हारा दुश्मन मज़बूत है । वृद्धावस्था आ गई , अब मृत्यु करीब है । तुम्हें अब भी ज्ञान नही हो रहा है ।जान पड़ता है तुम तभी जागोगे जब यम का डंडा तुम्हारे माथे पर लगेगा । संकेत ये है कि मृत्यु के समय का जागरण व्यर्थ होगा । कबीर हँस रहे हैं , उन्हें हँसी आती है । कबीर समृद्ध समाज पर हँस रहे हैं । अधिकतम और इफरात के समाज को देख कर हँसी आ रही है । चंचल मछली को नदी के जल से संतोष नही हुआ । वह समुद्र का सुख चाहती थी । किंतु समुद्र में सुख कहाँ है ? जो समाज ख़ुद दुखी है वहाँ व्यक्ति कैसे सुखी रह सकता है । कबीर बेलाग कहते हैं , कब्र में रहने वाला कैसे निश्चिंत रह सकता है ? ” जाका वासा गोर में सो क्यों सोवै निश्चिंत ।”
कृष्ण ने अर्जुन को जातिधर्म , कुलधर्म , परिवारधर्म सबको छोड़कर भक्तिधर्म में आने को कहा है । मनुष्य का उद्देश्य भक्ति है न कि जाति । भक्ति व्यापक समाज का हित है , विश्व मानवता का हित है । क्योंकि भक्ति स्वार्थ नही , परमार्थ है इसलिए जाति नहीं , भक्ति चाहिए । कबीर भी यही कहते हैं……….
राम और रहीम के प्रति उदार कबीर कहते हैं यदि ईश्वर एक हैं तो ख़ुदा और राम भी एक हैं । कबीर हिंदु – मुसलमान दोनों से नाराज़ हैं । वे कहते हैं दोनों को राह नही मिली है , दोनों भटक गए हैं ।
जोगी गोरख गोरख करैं , हिंदू राम नाम उच्चरै ।
मुसलमान कहै एक ख़ुदाई , कबीर के स्वामी घटि रहयौ समाई ।।
कबीर की हँसी का कारण समझ आ रहा है………इस सदी में जब विज्ञान उन्नति की सीमाएँ पार रहा है , हम कहाँ खड़े हैं ? कहाँ है वो कबीर जो फिर से समाज को झकझोर दे ? चलो उस कबीर को ढूँढें……!