यह कहानी एक ऐसी लडकी की है जिसने बचपन से अपने पापा से संगीत सीखा था। उसका और उसके पापा का एक पिता – पुत्री के अलावा , गुरू – शिष्य का रिश्ता भी था । उसके पापा ने उसका बड़ा अद्भुत नाम रखा था , जिसका अर्थ वो बचपन में नही समझ पाई थी । अचानक पिता के चले जाने से उसका जीवन निराशा में डूब गया और उसका आत्मविश्वास , उसका संगीत सब खो गया।
पीपल
1
काव्या अपने बगीचे में पानी दे रही थी…..पास ही माली काका क्यारियों की गुड़ाई कर रहे थे|
”दीदी ये दीवार के कोनों में उग आगे पीपल के पौधों को उखाड़ दूँ क्या?”-काका ने अचानक पूछा तो काव्या का मन अतीत की ओर भागने लगा……जहाँ पीपल सिर्फ एक पेड़ का नाम नहीं था….
उसने मुस्कुरा कर कहा- निकाल कर फेंकिये नहीं,कहीं और लगा दीजिये……
माली काका ने बड़े प्यार से पौधे को उखाड़ कर दूसरी जगह रोप दिया……काव्या को यकीन था कि जल्द ही पौधा वहां भी जड़ पकड़ लेगा और वक्त के साथ लहलहाने लगेगा….
पीपल….पापा उसे भी तो इसी नाम से पुकारा करते थे…..कैसे चिढ़ जाया करती थी वो….पापा से झगड़ती भी कि “पापा आपने ऐसा फनी सा नाम क्यूँ रखा है?…मेरी सहेलियां मज़ाक बनाती हैं”|
पापा हँस देते और अपनी लाड़ली को गोद में बैठा कर दुलारते और कहते –
“कोमल पत्तियों और ठंडी छाँव देने वाले पीपल जैसी है मेरी पीपल……जब बड़ी हो जाओगी तब ख़ुद समझ जाओगी अपने नाम का अर्थ”
अपने संगीत प्रेमी पापा की दुलारी थी वो……
काव्या भी उनकी तरह संगीत सीखे ये उनका ख्वाब था….वे उसे बचपन से संगीत से जुडी फिल्में दिखाते,हर शाम तानपुरा लेकर उसे रियाज़ करवाते…..वो अपनी लाड़ली को समझाते-“संगीत ज़िन्दगी में खुशियाँ और प्यार लाता है इससे कभी नाता मत तोडना…”
अपने पापा की हर बात वो गांठ बाँध लेती……
कभी कभी माँ उन्हें छेड़ती भी…..कि “घर के काम काज भी सीख लेने दीजिये उसे ,वरना शादी के बाद घर कैसे सम्भालेगी……”
पापा मुस्कुराते हुए कहते-“ बहुत वक्त पड़ा है…..घर तो मेरी काव्या गाते गुनगुनाते हुए सम्हाल लेगी….
कितना यकीन था पापा को उस पर…काव्या पौधों के बीच से सूखे पत्ते चुनते हुए सोचने लगी….
उस यकीन की वजह से ही तो पापा ने उसे हॉस्टल पढने भेजा था,क्यूंकि उनके शहर में कोई अच्छा संगीत विद्यालय नहीं था…….
अपनी लाड़ली को याद करके उसके पापा जब जब उदास होते उसे ख़त लिख भेजते…..वे कोई मामूली ख़त नहीं बल्कि बाकायदा संगीत की क्लास होते…..
खतों में माँ पूछती –कि काव्या तू ठीक से खाती पीती तो है न? और पापा का सवाल होता कि रोज़ क्लास के बाद रियाज़ करती है न काव्या?
काव्या भी उतने ही प्यार से उनके खतों का जवाब देती……उन्हें यकीन दिलाती कि उनकी बेटी उनके ख्वाब ज़रूर पूरे करेगी….
आज भी वो सारे ख़त सहेजे रखे हैं उसके पास…..
माली काका के जाने के बहुत देर बाद भी काव्या वहीं बगीचे में बैठी उन बीते सुरीले दिनों को याद करती रही……
उसने गुनगुनाने की कोशिश की मगर उसका गला रुंध गया……..
2
काव्या घर के कामों से निबट कर बाकी समय अपने बगीचे में फूलों के बीच ही बिताती थी। खाली बैठती तो फिर यादों में डूब जाती थी। वो अपने पापा का जाना भूल नही पा रही थी और भूलती भी कैसे , उसका संगीत उसके पापा से ही तो था , हर गीत उन्ही का सिखाया था। उसकी सुबह पापा के राग भैरव और विभास के सुरों से होती थी और रात राग पीलू और मालकौंस के स्वरों से होती थी। उसके संगीत को लेकर पापा ने और उसने कितने सपने देखे थे , पर पापा के जाने के बाद , जैसे उसने सपने देखना बंद कर दिया था। गाने की कोशिश करती तो उसकी आँखों के आगे वो दिन आ जाता जब उसे उसके एक दूर के रिश्तेदार हॉस्टल लेने आए थे और वह हैरान थी क्योंकि ऐसा पहले कभी नही हुआ था। उसे बताया गया था कि उसके पापा की तबीयत खराब है। काव्या सारे रास्ते सोचती रही थी कि क्या हो गया पापा को ? कल ही तो उनका ख़त मिला था जिसमें उन्होंने लिखा था कि वो “मिली” फ़िल्म देख कर आए थे जिसे देख वो बहुत रोए थे क्योंकि वो कहानी एक पापा और उनकी बेटी की कहानी है, फिर आज अचानक उन्हें क्या हो गया ? जब वह घर पहुँची तो माँ को बिलखते पाया था ,पापा उसे छोड़ कर जा चुके थे। वह सन्न रह गई थी समझ नही पाई थी कि ये क्या हो गया उसके साथ। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया खत्म हो गई। उनके पास न रहने को अपना घर था और न कमाई का कोई ज़रिया था। ऐसे में उसे हॉस्टल में पढ़ाना माँ के लिए बहुत मुश्किल था , काव्या भी माँ की मजबूरी समझ रही थी इसलिए उसी ने माँ से कहा था कि … वो वहीं पास के स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी । लेकिन संगीत छूट गया था , क्योंकि अब सुविधा नही थी। काव्या मन ही मन बुझती जाती थी लेकिन हर रोज़ नियम से पापा का तानपुरा साफ़ करती और भीगी आँखों से फ़िर कोने में रख देती थी।एक दिन बेसुरे हो गए तानपुरे को मिलाने बैठ गई थी।सुर लगाने लगी तो फिर गला भर आया और आँखों में नमी आ गई ।पापा के बिना वो कभी गाएगी ऐसी कल्पना भी नही की थी ।
3
काव्या की ज़िंदगी से संगीत छूटता जा रहा था । हर पल वो अपने बचपन और पापा की यादों में घिरी रहती थी। उसने अपने आस पास बचपन की यादों का एक दायरा सा बना लिया था , जिसके बाहर वो निकल ही नही रही थी। कॉलेज में आई तो भी काव्या वही बुझी बुझी सी रहती , मुस्कुराती चहकती काव्या की मुस्कान फीकी पड़ गई थी । ऐसे में माँ ने अनिकेत से उसकी शादी का फैसला ले लिया था क्योंकि माँ का विचार था कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा ये अपने घर परिवार में सब भूल जाएगी। अनिकेत , जिसका संगीत से कोई संबंध नही था लेकिन सरल और काव्या से प्रेम करने वाला पति था। काव्या शादी के बाद घर गृहस्थि में लीन तो हो गई लेकिन मन का एक कोना खाली ही रहा था। वो अब भी अपनी यादों के दायरे को तोड़ नही पाई थी । वह कभी बगीचे में लगी रहती तो कभी माँ के पास चली जाती थी। एक दिन माँ ने उससे कहा था
“काव्या तुम गाना फिर से शुरु क्यों नही करतीं ? तुम्हारी सच्ची खुशी तो उसी में है।“
और जाते हुए माँ ने उसे पापा का तानपुरा थमाते हुए कहा था
“ काव्या इसे अपने साथ लेकर जाओ , और गाने की कोशिश करो ।तुम्हारे पापा तुम्हें जो दे गए हैं वो कभी ख़त्म नही हो सकता।“
उसने सिर झुका कर तानपुरा थामा तो उसके बेसुरे हो गए तार झंझना उठे थे तब उसे याद आया था कि पापा कभी तानपुरा बेसुरा नही होने देते थे , हमेशा सुर में मिलाकर ही रखते थे , यह सोच उसे अपने पर ग्लानि हो रही थी कि उसने पापा की कोई बात नही रखी। उसने अपने पापा की मेहनत और सपने सब तोड़ दिए थे। माँ ने कही तो उसके मन की बात थी पर उसे अपने पर विश्वास कहाँ था कि वो फिर कभी गा पाएगी । फिर भी उसका मन हर वक्त कुछ तलाश करता रहता था , जैसे वो अंधकार में कुछ ढूँढ रही थी और उसकी तलाश अधूरी ही रहती थी। जो चीज़ उसे जन्म से मिली थी वह उससे दूर नही रह सकती थी लेकिन उसे राह नही सूझ रही थी , वह दिशाहीन सी यादों में कैद चल रही थी।
4
तानपुरा अपने कमरे के एक कोने में खड़ा करते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई , उसे याद आया जब उसने पहली बार उस तानपुरे को हाथ लगाया था और पापा ने रियाज़ करने को कहा था तो शौक शौक में देर तक बजाने के कारण उसकी उँगली छिल गई थी और उससे खून आने लगा था , उसने चुपचाप उसपर बैंडएड लगा ली थी । पापा और माँ के पूछने पर झूठ कह दिया था कि माँ के लिए पूजा के फूल तोड़ रही थी तो काँटा चुभ गया था । अगर ऐसा न कहती तो पापा उसे कई दिन तानपुरा बजाने न देते। वो सोच रही थी कि अब वही तानपुरा बेसुरा खड़ा था और वो उससे दूर भाग रही थी। इतने में कॉल बैल बजी और काव्या दरवाज़ा खोलने बाहर आई । अनिकेत ऑफ़िस से वापस आया था
“काव्या बहुत थक गया हूँ । एक कप अदरक वाली चाय मिलेगी। “
कहते हुए अनिकेत सोफ़े पर बैठ गया था ।
“ तुम फ़्रैश हो कर आओ मैं अभी बनाती हूँ। “
कहती हुई काव्या किचन में चली गई और अनिकेत कमरे में । अनिकेत ने कमरे में जाते ही कोने में खड़ा तानपुरा देखा तो चहक उठा
“ काव्या तुम गाना शुरू कर रही हो ? वाह , मज़ा आ गया । “
ये कहते हुए वो बाहर आ गया था
“काव्या ये तुमने बहुत अच्छा सोचा। “
“पता नही अनिकेत मैं गा भी पाऊँगी कि नही , इतने समय के बाद गाना आसान नही और मुझे कुछ याद भी कहाँ है। “
कहते हुए उसके गले में जैसे कुछ फँस गया और वो चुप हो गई थी। अनिकेत ने उसके कंधों कर हाथ रखते हुए प्यार से कहा था
“ काव्या तुम भूली कुछ भी नही हो ,तुमने अपने मन दर्पण पर धूल जमा ली है। उसे साफ़ कर दो। “
लेकिन वो तो जैसे अपना अस्तित्व खो चुकी थी । वो सिर्फ़ और सिर्फ़ बेटी , पत्नी , बहू और माँ थी बस ।
5
काव्या भोर होते ही , चिड़ियों की चहक के साथ उठ जाती थी । समय कब पक्षियों के झुंड की तरह उड़ गया पता ही नही चला । अब वो दो बच्चों की माँ थी । आज भी वो उठ कर बाहर बगीचे में आकर बैठ गई थी और अनिकेत की कही बात को सोच रही थी। वह नए रोपे गए पीपल के पौधे को देखने लगी कि इसने जड़ पकड़ी कि नही कि उसकी नज़र दीवार की झिर्री से झाँकते पीपल के कोमल नए पौधे पर पड़ी तो वो सोचने लगी कि किस तरह ये कोमल पौधा इस पथरीली , सख़्त दीवार में भी पनपने की जगह ढूँढ लेता है ! आज वो उसमें अपना अस्तित्व , अपने नाम का अर्थ ढूँढ रही थी । कैसी भी विपरीत परिस्थिति में अपने वजूद को बनाए रखना , क्या यही था उसके नाम का अर्थ ? क्या इसीलिए पापा ने उसका नाम पीपल रखा था ? लेकिन उसने तो परिस्थितियों के सामने हथियार डाल दिए , वो तो हार कर बैठ गई थी। शायद अनिकेत ठीक ही कह रहा था कि उसने अपने मन पर धूल जमा ली है । यह सोचते हुए वो धीमे कदमों से अंदर जाने लगी । कमरे में जाकर उसने काँपते हाथों से तानपुरा उठाया और दूसरे कमरे में बैठ गई। बेसुरे हो गए तानपुरे को सुर में मिलाने लगी , तानपुरा मिलाते हुए पापा की एक एक बात याद आ रही थी । इतने दिनों बाद सुर लगाने लगी तो आवाज़ काँप गई और खाँसते खाँसते आँखों से पानी बहने लगा । अनिकेत कमरे के बाहर चुपचाप खड़ा सब देख रहा था । वो जानता था कि काव्या को ये यादों का दायरा खुद ही तोड़ना होगा , इससे बाहर निकलना होगा। काव्या ने तानपुरा रख दिया उसे घुटन होने लगी , अनिकेत ने अंदर आकर उसे उठाया तो वह उसके कंधे पर सिर रख कर भीतर की घुटन बहाती रही । काव्या को निराशा के बादलों ने घेर लिया था , कहीं दूर तक कोई किरण नज़र नही आ रही थी।
6
अगले दिन जब उसने सुबह उठ कर बगीचे के बाहर रोपे पीपल के पौधे को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई , पौधा जड़ पकड़ चुका था और नन्हें नन्हें लाली लिए पत्ते बाहर झाँक रहे थे। उस दिन उसके मन में भी एक उम्मीद ने जन्म लिया था , वह भीतर गई और फिर तानपुरा लेकर बैठ गई थी। आज उसके हाथ तानपुरा थामते हुए काँपे नही थे । वह मंद मंद आलाप ले रही थी । काव्या नियम से अपना रियाज़ करने लगी । बरसों की जमी धूल झड़ने लगी थी । निराशा के बादल धीरे धीरे छंटने लगे थे । अनिकेत उसके लिए बहुत खुश था , वो चाहता था कि काव्या अपना सपना पूरा करे । आज काव्या का जन्मदिन था , अनिकेत उसके लिए पंडित जसराज के प्रोग्राम के पास लाया था । काव्या के लिए इससे अच्छा उपहार नही हो सकता था। बरसों वाद वो म्यूज़िक प्रोग्राम सुनने जा रही थी , जब छोटी थी तो पापा उसे ले जाते थे। एक दिन जब काव्या अपना सुबह का रियाज़ समाप्त कर उठी तो फ़ोन की घंटी बज उठी , उसने सोचा माँ का होगा , वह रोज़ नियम से उसकी ख़ैर ख़बर लेती रहती थीं , लेकिन फ़ोन किसी अजनबी का था , किसी म्यूज़िक कॉलेज का जहाँ उसे परफ़ॉम करने का आमंत्रण मिला था। अक्सर संयोग ही मनुष्य का निर्माण कर देते हैं । उसे अपने पर विश्वास नही हो रहा था ।वो सोच रही थी कि ये कैसे हुआ ? भागकर उसने अनिकेत को ये खबर दी थी ।
“ अनिकेत , क्या मैं ये कर पाऊँगी । क्या मुझे हाँ कहना चाहिए । “
वो नरवस थी ।
“काव्या तुम सब कर सकती हो । तुम ये प्रोग्राम ज़रूर करोगी।“
अनिकेत ने उसे विश्वास दिलाया था।
लेकिन ये हुआ कैसे ?
उसने अनिकेत से पूछा था । तभी पता चला कि पड़ौस के पॉल साहब के यहाँ म्यूज़िक कॉलेज की प्रिंसिपल साहिबा आईं थी जोकि उनकी मित्र हैं । उन्होंने काव्या का रियाज़ सुना और सोच लिया कि उन्हें अपने कॉलेज में बुलाएँगी ।उसके पास एक महीने का समय था तैयारी करने के लिए , उसने दिन रात मेहनत शुरू कर दी , उसे लग रहा था जैसे ये उसकी ज़िंदगी का सबसे कठिन इम्तेहान था । आखिर वो दिन भी आ गया , काव्या आज पहली बार लोगों के सामने परफ़ॉम करने वाली थी । जब वो परफ़ॉम करने स्टेज पर पहुँची तो उसके पाँव काँप रहे थे , इतने लोगों के बीच उसे डर लग रहा था । सामने बैठा अनिकेत ऐर उसके बच्चे मुस्कुरा रहे थे । ओपन स्टेज पर वह आँखें मूँद कर बैठ गई , उसे याद आया पापा कहते थे जब स्टेज पर बैठो तो सोचो सिर्फ़ तुम हो , उसने पापा से सीखी स्तुति से गाना शुरू किया और गाती चली गई । प्रोग्राम समाप्त होने पर उसने देखा लोग तालियाँ बजा रहे थे ,अनिकेत और उसके बच्चे खड़े हो गए थे । उसने आसमान की ओर देखा तो सिर पर पीपल के पेड़ों के झुरमुठ उसे साया दे रहे थे ।
मन की बात कागज पर उतार दिया आपने तो ।
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Beautifully written – simple and heartwarming ! Looking forward to read more.
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