मन बाँवरा उड़ चला
ना जानू मैं ये कहाँ चला
था जो बंधा पिंजरे में , साँसें थी पहरे में
कंठ था सूखा , गीत नही थे , गूँगे मन , सूनी आँखों में
मैं खोई थी सपनों में
मन बाँवरा………
झोंका हवा का ऐसा आया
मन पिंजरे को तोड़ के भागा
पर , पंख थके थे , भूल गए थे उड़ना , हवा को छूना
मन बाँवरा…………………
दिल ने यूँ आवाज़ लगाई
परशिकस्त तू नही , तू शादकामी
परवाज़ है तू….मंज़िल तेरी पास आई
मन बाँवरा………..