शहर में भटकते वो रात के साए
है कहीं उनका भी कोई गाँव में ।
फ़ुटपाथ पर सोते हुए
झलती है पंखा आती-जाती गाड़ियाँ ।
लिपटा है वो भी इंच भर की मौत में ,
चला आया यहाँ रोटी की खोज में ।
चूल्हा है ठंडा आज माँ का
अपने बेटे की सोच में ।
सुबह मिली थी लाश एक लावारिस यहाँ
हँह!! न जाने क्यों इन्हें है सोना यहाँ !!
है फ़ुटपाथ भी कहीं सोने की जगह ??
गाड़ी सड़क से आ गई फ़ुटपाथ पर
गाड़ी बड़ी थी क्या करे
था बड़ा वो आदमी
होती हैं उनकी रातें भी बड़ी ।
मर गया तो क्या हुआ ?
है बोझ वो धरती पर बड़ा ।
जीने का हक़ उनको नही
ग़रीबी हटाने का है हमने नारा लिया ।
तथाकथित विकसित देशों की यही विडम्बना है।
LikeLike
Thanks . ये एक दर्द है जो आपने महसूस किया ।
LikeLike
धन्यवाद आपका , मेरे जज़बात को समझने के लिए ।
Sent from Mail for Windows 10
LikeLike
Thanks . ये एक दर्द है जो आपने महसूस किया ।
LikeLike