कैसे धुंधला गए हैं चेहरे समय की आँधी में
आता है कभी यादों का बवंडर
फिर गुज़र जाता है धीमी चाल से
छोड़ जाता है वो फिर अपने निशाँ ।
कहीं दिल छिल गए , हैं कहीं कोरी नज़र ,
कहीं उखड़े हैं पेड़ तो कहीं उजड़ी है छत
फिर न पेड़ लगते हैं और न छत ही बनती है ।
कहीं कोई बीज शायद छितर कर दब गया था मिट्टी में
मिट्टी नर्म होगी तो वो निकलेगा अंधेरों से ।
ईंट-गारा मिल गया तो सर पे छत भी आएगी
छिले ज़ख्मों में कोई मरहम भी लगाएगी
कोरी नज़रों में शायद नमी भी आएगी
यादों के बवंडर की आँधी , कोई निशानी साथ लाएगी ।