ओ चाँद !! तू कितना अकेला है !!
तारों से भरा आसमाँ है
पर चलता बिल्कुल अकेला है ।
वो ग्रहण भी आता है
तो तुझे ही सताता है !!
कभी लाल तो कभी काला कर जाता है ।
वो हल्के , रूई से बादल आते हैं
तुझ को ही ठग जाते हैं !!
अमावस तुझे अंधेरे में धकेल जाती है ।
फिर एक दिन पूर्णिमा आती है ,
बड़ा तरसा के आती है ,
तुझे दूध से नहला जाती है ।
अमावस आएगी ये सोचकर तू फिर घटता जाता है ,
मैं ताकती हूँ तुझे , मेरा दिल तेरे ही साथ चलता है ।
ऐ.., मेरे हमसफ़र , तेरी राह आसमाँ पे है ,
तुझे सारा जहाँ ताकता है ,
गीतों में ज़िक्र तेरा आता है ।
मेरी राह इस ज़मीं पे है ,
कहाँ बढ़ी , कहाँ घटी , कौन जानता है ,
कभी तू भी फ़लक से ज़मीं पे आ के तो देख ,
नज़रों का फेर ही यहाँ नज़र आता है ।
फिर भी ऐ…मेरे हमसफ़र , तेरा-मेरा एक सा रास्ता है ।
Nice
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बेहतरीन 👌👌👌
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Thank you so much Fatima ji 🙏
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Sorry , typo error ! Garima ji .
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