सावन

सावन पहले भी आता था ,

बारिश के संग कितनी खुशियाँ भी लाता था ,

बारिश में नहाना होता था ,

कागज़ की नाव चलाना भी बड़ा काम होता था ।

नीम पर पड़ा झूला कितना सुहाना होता था ,

हर पींग पर आसमान को छूना होता था ,

इंद्रधनुष के रंगों से कुछ रंग चुरा कर बस्ते में भरना होता था ।

स्कूल से लौटते , पानी भरे गड्ढों में छाई-छप्प कर

साथी को बस यूँही भिगोना होता था ।

भीगे तन पर डाँट नही , पकोंड़ों से दुलार होता था ।

तब नदियाँ , नदियाँ थीं ,

कचरे का ढेर उसमें किसी ने डाला नही था ,

पॉलिथिन का भी बोलबाला नही था ,

गाय-भैंस का गोबर सड़कों पर फैला नही था

क्योंकि गाय-भैंस का घर में भी एक ठिकाना था ।

चिकिनगुनिया और डेंगू के डर ने अब सबको घेरा है ,

तब इनका कहीं कोई बसेरा नही था ।

अबके सावन आएगा , कितनों को अपने साथ ले जाएगा

ये तो हमने कभी सोचा भी नही था !

हम कहाँ से कहाँ आ गए !

एक बूंद को जीवन माना था ,

जीवन ही जीवन का दुश्मन बन जाएगा ,

सावन ने ये तो कभी सोचा भी नही था ।

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