साँझ होते ही पैमाने छलक जाते हैं
होठों से छूते ही दीवाने मचल जाते हैं
कोनों में दबे दर्द भी आँखों से झलक जाते हैं
मेहताब तेरे आने से क्यूँ अश्क पिघल जाते हैं ।
यूँ तो दिनभर भी दुनिया के बाज़ार से गुज़र जाते हैं
चलते हुए लोगों से क्या – क्या हम पी जाते हैं
कुछ ग़म दे जाते हैं तो कुछ गर्द उड़ा जाते हैं
हम भी ऐसे काफ़िर हैं कि गर्द को झाड़े चले जाते हैं ।
🙂 bahut pyari kavita
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प्रशंसा के लिए आभार ।
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सुंदर
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Thanks for appreciation .
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Welcome 🙏
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