हम दिल पर बोझ ढोए चले जाते हैं
अपना बोझ दूसरों पर डाले चले जाते हैं
बचपन अच्छा था , दिल बड़ा हल्का था
दूसरों के सपनों का बोझ कहाँ अपना था ?
अब घरों में सपने समाते नही , अपने बच्चों में बाँट देते हैं हम
उनके सपनों पर अपने रंग चढ़ा देते हैं हम
लाल रंग लाल है , नीला नही , पीला चमकदार है , काला नही
क्यों , हम ये समझ पाते नही ?
क्यों उनके सपनों को बेरंग बना देते हैं हम ?
मेरे सपने क्यों मेरे नही , उसके सपने क्यों उसके नही ?
सफ़ेद रंग में हर रंग चढ़ा देते हैं हम
दिल का बोझ यूँही बढ़ा देते हैं हम ।
उसके सपनों पर उसका हक है , उसमें केवल उसका वजूद है
क्यों उसके वजूद को हिलाए जाते हैं हम
अपनी परझाई क्यों उसमें देखना चाहते हैं हम ?
क्यों अपना बोझ उसके कांधे पर डाले चले जाते हैं हम ?
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति👌
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Thank you so much .
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🙏
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Nice
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Thank you so much .
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Nice sorry mam late sa reply ka liya
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कोई बात नही ! पढा आपने इसके लिए धन्यवाद ।
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Thanks mam
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