रात इतनी ख़ामोशी से चली आती है ,
ख़्यालों की पोटली बगल में दबा लाती है ,
जल-थल सब सो जाता है ,
मन पंछी बन उड़ जाता है ,
न जाने कहाँ-कहाँ दौड़ लगाता है ,
खुली आँख सपने दिखलाता है ,
रात दबे पाँव चली जाती है ,
भोर अपने रंग बिखराती है ,
परिंदे-चरिंदे शोर मचाते हैं ,
मन गुमनामी की चादर तान सो जाता है ।
mann ki baat badhiya rachna
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🙏
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👌👌सही बात कही मैम मन गुमनामी की चादर तान सो जाता है |
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😊 मन को समझने के लिए शुक्रिया ।
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