पीपल की छाँव
बचपन की है याद सुहानी
मस्त हवा से दौड़े भागे
सर्दी – गर्मी न धूप थी आगे
पीपल था एक घर के आगे
घने पेड़ की ठंडी हवा सुहानी
छाँव में उसकी करते दिनभर मनमानी
डाल के झूला डाली पर , पींगे भरते ऊँची – ऊँची
वहाँ से दुनिया लगती थी फिर कितनी अनूठी
कोमल – कोमल पत्ते उसके , प्यार से हमको सहलाते थे
अम्मा दूर से देख हमें फिर मुस्काती थी
घनी टहनियों के भीतर घुस नीड़ बया ने बना लिया था
उसकी अजब कला हम सब , देखा करते अचरज से बस
फिर एक दिन कुछ बदला यूँ सब
सोया था सपनों में जग जब
काली रात अँधियारी थी तब
आया एक तूफ़ान अचानक
ज़ोर काथा फिर पानी बरसा
दिल मेरा था ज़ोर से धड़का
घर का हर एक कोना खड़का
सुबह हुई तब दौड़ के बाहर देखा
कैसा होगा नीड़ बया का
देख के दिल यूँ ठहर सा गया
नीड़ बया का दूर पड़ा था
पीपल का भी तना झुका था
रोई , चीखी , चिल्लाई
पर पीपल को खड़ा न कर पाई
चली गई वो पीपल छाया
टूटा डाली का वो झूला
बया की मुस्कान ले गया
बचपन का वो प्यार ले गया
एक सुहानी याद दे गया