मैंने देखा है , रिश्तों का दम घुटते
, सुबह-शाम उन्हें मरते
मैंने देखा है , उनको बाहर से हँसते
, उन्हें भीतर से सुलगते
मैंने देखा है उनको अहम् की आग में जलते
उन्हें एकांत की गहराई में डूबते
मैंने देखा है उनके क़दमों को डगमगाते
उन्हें दिलों में गिरह बाँधे
मैंने देखा है उनकी नज़रों को धुंधलाते
उन्हें बीते दिनों में झांकते
मैंने देखा है उनको छत पर शामियाना ताने
शामियाने के छेदों से तारों को ताकते
मैंने देखा है उनको रातों में जागते
अनदेखे रंगीन सपनों को तरसते ।
माला जोशी शर्मा
उम्दा ☺️☺️
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Thank you for reading .
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Very nice👌
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अपृतिम
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आपका आभार पढ़ने और सराहना के लिए ।
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🙏🙏
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